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सुनो ! तुम मेरी वो आदत हो, जिसे मैं चाह कर भी नहीं छोड़ सकता !

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सात फेरों से तो, महज शरीर पर हक मिलते हैं, आत्मा में हक तो रूह के फेरों से मिलते हैं !
हौसले बुलंद कर रास्तों पर चल दे.. तुझे तेरा मुकाम मिल जाएगा, बढ़कर अकेला तू पहल कर देखकर तुझको, काफिला खुद बन जाएगा।
सिर्फ मैं हाथ थाम सकूँ उसका, मुझ पे इतनी इबादत सी कर दे, वो रह ना पाऐ एक पल भी मेरे बिन, ऐ खुदा तू उसको मेरी आदत सी कर दे.
अपने प्रेम, अपनी खुशी और अपने उल्लास को रोककर मत रखें। आप जो देते हैं, वही आपका गुण बन जाता है, न कि वह जो आप रोक कर उल्लास हैं।
क्यूंकि इस दुनिया की तो राह में रोड़ा अटकाने की आदत है।
ईश्वर से कोई भी प्रेम कर सकता है क्योंकि वह आपसे कुछ नहीं मांगता। पर अपने पास खड़े व्यक्ति से प्रेम करने की कीमत जीवन से चुकानी पड़ती है।
सुनो ! तुम मेरी वो आदत हो, जिसे मैं चाह कर भी नहीं छोड़ सकता !
डट कर करना सामना तुम मुश्किलों का, एक दिन वक्त भी तुम्हारा गुलाम होगा
दर्द कम नहीं हुआ है मेरा ! बस सहने की आदत हो गयी है !!
मुझसे मत पूछना कि मैं तुमसे इश्क़ क्यों करता हूं, क्योंकि फिर मुझे वजह बतानी पड़ेगी अपने जीने की !